Friday, June 21, 2013

उत्तराखंड के लोगो द्वारा मदद

बाहर से आये पर्यटकों और उनके आपदा में फंसने पर पर्वतीय समाज के लोगों ने बेहद समझदारी और हमदर्दी से सहयोग किया है...परन्तु मीडिया के माध्यम से कुछ तत्व जिनमे पर्यटक भी सम्मिलित हैं उत्तराखंड के लोगों की नकरात्मक तश्वीर पेश कर रहे हैं...उदाहरणतः: जब अपने तजुर्बे से हालात की गंभीरता को देखते हुए केदार घाटी के एक पहाड़ के होटल व्यवासी ने पर्यटकों को बारिश में ही होटल खाली करवाया तो उन्होंने देहरादून उतरते ही उस होटल व्यवासी के बारे में खूब खरी-खोटी बतियाई...बाद में पता चला कि बह होटल, आपदा में बहने वाला प्रथम होटल था...उस बेचारे ने अपने तजुर्बे के आधार पर एक तो पर्यटकों को समय रहते निकलवा दिया और उनकी व उनके पुरे परिवार की जान बचवा दी पर इधर उस बेचारे को (पता नहीं जिन्दा भी होगा या नहीं) इन्ही पर्यटकों के द्वारा खूब गाली बकी गयी कि "हमें बच्चों समेत होटल से भरी बारिश में निकलवा दिया गया...आदि-२".....बचाए गए पर्यटकों के बीच दो महिलाओं ने आगे आकर बताया कि कैसे पर्वतों के लोगों ने उनके लिए अपना राशन-पानी खोल दिया कि अब उनके स्वयम के पास भी राशन-तेल ख़त्म हो गया है...इन महिलाओं ने कहा कि "हम तो बच ही गए है...अब पहाड़ों के लोगों की चिंता करो...उन तक राशन-तेल पहुनचावो"....उत्तराखंड के मैदानी समाज के लोगों ने भी पर्यटकों और उनके रिश्तेदारों के लिए जॉली ग्रांट के पास खुला लंगर चलाया हुआ है...जिससे न केवल पर्यटक बल्कि मीडिया कर्मी भी अपनी भूख मिटा रहे हैं....और इतना कुछ करने के बाद भी मीडिया में कोई एक बेईमान चाय-रेस्टोरेंट वाले की कहानी सुर्खी बटोर रही है कि "फंसे हुए पर्यटकों से मुहं-मांगे दाम लिए जा रहे हैं"...सर्वबिदित है कि पहाड़ का आदमी ईश्वर से डरने वाला. ईमानदार और सहायता करने वाला होता है..यह हमारा चरित्रबल है...फिर हम पर ऐसा लांछन क्यूँ लगे...और क्यूँ हम ऐसे लांछन पर नपी-तुली प्रतिक्रिया न दें......!!

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